Wednesday, April 22, 2009

आज के दौर की मजबूर पत्रकारिता

आज के युग मैं पत्रकारिता महज बड़े पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली बन कर रह गई है.बड़े से बड़े अनुभवी और विद्वान् पत्रकार भी आज निष्पक्ष हो कर पत्रकारिता नहीं कर सकते.आज एक पत्रकार वर्तमान राजनैतिक और सामाजिक परिदश्य के बारे मैं क्या सोचता है ये महत्वपूर्ण नहीं है,महत्वपूर्ण ये है की किस व्यक्ति ने आप के अखबार या चैनल मैं पैसे की डील करके अपने पक्ष मैं समाचार चलवाने के लिए स्थान आरक्षित करा रखा है.अगर पत्रकार किसी व्यक्ति या मुद्दे पर निष्पक्ष हो कर अपनी राय अपने समाचार पत्र या इलेक्ट्रानिक चैनल मैं प्रकाशित करता है तो सर्वप्रथम तो वो स्थानीय स्तर पर निजी विरोध का सामना करता है,फिर उसके मालिक सम्बंधित पक्ष से आर्थिक लेन-देन तय करने के बाद उसी पत्रकार को सम्बंधित व्यक्ति का गुंणगान और महिमामंडित करने के लिए मजबूर करते हैं.ऐसे मैं महज चंद रुपयों की तनख्वाह से अपनी रोजी रोटी चलने वाला पत्रकार अंत मैं पता तो कुछ नहीं हैं,बल्कि एवज मैं उसे व्यक्तिगत दुश्मनी और जिल्लत का सामना करना पड़ता है.यही है आज की पत्रकारिता का सच.